"ये दुनिया"
है अपने ही अहम् में, चलती ये दुनिया ।
भला कब हुई किसीकी, बदलती ये दुनिया ।।
उड़ते हुए परिंदों को, गिराने पे अमादा ।
जवां हौसलों के परों को, कुचलती ये दुनिया ।।
मोहब्बत का मुखौटा, चेहरे पे लगाए ।
फ़कत नफ़रत के शोले, उगलती ये दुनिया ।।
कब कौन किसका, कोई नहीं "चौबे" ।
लाख चाहने पर भी नहीं, पिघलती ये दुनिया ।।
#चौबेजी
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©Choubey_Jii
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