White अच्छा हूँ या बुरा हूँ यह तुम बताओ या वक़्त पर छोड़ दो
गवाही दूँ क्यों मैं ग़र शिकवा है तो तुम राह को मोड़ दो
अब होगा नहीं यूँ बदलना बार-बार ख़ातिर तुम्हारे मुझे
बनावटी रिश्तों के किश्तों को सर-ए-आम अब तोड़ दो
तब्दीली होनी चाहीए पर इतनी भी नहीं ज़िंदगी में के
किसी की ज़िंदगी की लगाकत वाट तोड़-फ़ोड़ दो
तो अच्छा होगा चला जाना ज़लील होने से पहले
दिल-ए-मुर्दा कहता है मिले तो उसे भी निचौड़ दो
©विशाल पांढरे
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