कितना भी तू कर ले आग़ाज़ है मोहब्बत ए ग़ालिब एक दि

"कितना भी तू कर ले आग़ाज़ है मोहब्बत ए ग़ालिब एक दिन महबूब के हाथों हारना ही है"

 कितना भी तू कर ले आग़ाज़ है मोहब्बत ए ग़ालिब एक दिन महबूब के हाथों हारना ही है

कितना भी तू कर ले आग़ाज़ है मोहब्बत ए ग़ालिब एक दिन महबूब के हाथों हारना ही है

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