हां मेरे अंदर अभी भी बचपन है,
प्यार से कहे दो शब्द से मान लेती हूं अपना,
नही है पैसे की भूख और दिखावे का जीवन,
सबका साथ और प्यार ही मेरा है सपना,
मतलब के रिश्ते देती बहुत है पीड़न,
उम्र में होते जा रहे हम बड़े,
साथ जीवन में छूट रहे जो पहले थे संग खड़े,
काश सब मन में बैर और ईर्ष्या का भाव न लाते,
और उम्र में बड़े और मन से बच्चे ही कहलाते,
लेकिन सब दिखावे की भीड़ का हिस्सा हो गए,
और बस हम सब बचपन का किस्सा हो गए,
लेकिन आज भी बिना झिझक मैं हंस लेती हूं,
बिना स्वार्थ के मैं सबसे बातें कर लेती हूं,
ये स्वभाव मेरा मुझे कभी कभी खुद डंस जाता है,
अच्छे के लिए अच्छा लेकिन बुरा बड़ा दुख दे जाता है,
इतना सहने पर भी ये स्वभाव बदल न पाता है,
मेरा बचपन ही मुझे कभी सुख और कभी पीड़ा दे जाता है।।
Sandhya kanojiya
©Sandhya
#ChildrensDay