ऊलझ चुकी हो मैं अपनी सोच
और रिश्तों के बीच में||
मेरी सोच मैं अपनी बात रखने का मतलब बहस नहीं
पर मेरे रिश्तों के नजर में अपनी बात रखना बहस हैं||
कभी सोच कहता हैं कि छोङो
इन रिश्तों को इनका काम हैं कहना
पर कैसे छोङू इन रिश्तों को आखिर इन्हीं के साथ है रहना||
कोशिश करती हूँ बीच का राश्ता खोजने की
पर ये राश्ता भी अपनों को दर्द देकर ही पार किया जा सकता है अपनी सोच को कुचल के आगे बढा जा सकता है||
पता है कि मंजिल आसान नहीं
मुश्किलें कम नहीं
पर कोशिश कर रही हूँ
खुद को ही सुलझाने की||
©Pakshi
#Fake #Broken