एक सवाल अक्सर मन में घर कर जाता है
हमेशा कुछ न कुछ पीछे छूट ही जाता है
कुछ ख़्वाब , कुछ हक़ीक़त का
एक किस्सा सा बन जाता है
आंख मैं रहते हुए भी वो आँसू
बह कहाँ पता है
सबको खुश रखने की कोशिश मैं
इंसान खुद से रूठा रह जाता है
सिर्फ तुझे सवाँरने की ख़ातिर ए ज़िन्दगी
बांकी सब बिगड़ सा जाता है।
BAJETHA NIKITA...
ऐ ज़िन्दगी.....