पता नहीं क्यों भीतर ही भीतर मैं बरबस ही.... ना जा | हिंदी शायरी

"पता नहीं क्यों भीतर ही भीतर मैं बरबस ही.... ना जाने किस से और क्यों उलझती जाती हूँ..., ना जानती हूं किसी स्वप्न को जो जिंदा हो और.... ना ही किसी सुर्जित किरण को जो इनमें नव प्राण भरे। ©Sonam Verma"

 पता नहीं क्यों भीतर ही भीतर मैं बरबस ही.... 
ना जाने किस से और क्यों उलझती जाती हूँ...,
ना जानती हूं किसी स्वप्न को जो जिंदा हो और.... 
ना ही किसी सुर्जित किरण को जो इनमें नव प्राण भरे।

©Sonam Verma

पता नहीं क्यों भीतर ही भीतर मैं बरबस ही.... ना जाने किस से और क्यों उलझती जाती हूँ..., ना जानती हूं किसी स्वप्न को जो जिंदा हो और.... ना ही किसी सुर्जित किरण को जो इनमें नव प्राण भरे। ©Sonam Verma

#Confusion#JourneyOfLife

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