वो जब मिली मुझसे
तो हम अजनबी थे
मिलकर अच्छा लगा हमें
एक दूसरे से मिल कर हमें
अपना सा लगने लगा
और हमने एक दूसरे
को अपना लिया
मिलकर दो जिंदगियां एक हुई
और दोनों की जिंदगी की गाड़ी
दौड़ने लगी एक सड़क पर
फिर ना जाने कब वह गाड़ी
दौड़ते -दौड़ते सड़क छोड़ कर
रेलगाड़ी बन गई
जो गाड़ियां पहले सड़क पर दौड़ती थी
अब वो दो पटरियों पर दौड़ने लगी
एक- दूसरे से बिल्कुल दूर
एक- दूसरे को निहारने लगी
निहारते- निहारते ना जाने कब
एक - दूसरे के दिल से दूर होती चली गई
जो कभी एक जिस्म एक जान हुआ करती थी
वह फिर से दो जिस्म दो जान हो गई
©SK Poetic
वो अजनबी