कल का बोझ आज क्यों उठाना उन तकलीफो को रोज-रोज क्यो | हिंदी शायरी

"कल का बोझ आज क्यों उठाना उन तकलीफो को रोज-रोज क्यों जगाना जो आगे बढ़ने ही नही देती सपनों को नई मंजिल तक अब उन दर्द भरी यादों के ताबुद् को होगा मकबरा-ए ताजमहल बनाना। ©Ritu Jain"

 कल का बोझ आज क्यों उठाना
उन तकलीफो को रोज-रोज क्यों जगाना
जो आगे बढ़ने ही नही देती 
सपनों को नई मंजिल तक 
 अब उन दर्द भरी यादों के ताबुद् को 
होगा मकबरा-ए ताजमहल बनाना।

©Ritu Jain

कल का बोझ आज क्यों उठाना उन तकलीफो को रोज-रोज क्यों जगाना जो आगे बढ़ने ही नही देती सपनों को नई मंजिल तक अब उन दर्द भरी यादों के ताबुद् को होगा मकबरा-ए ताजमहल बनाना। ©Ritu Jain

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