Girl quotes in Hindi आनंद का समय था वही, ईश्वरीय ग | हिंदी Poetry Vide

"Girl quotes in Hindi आनंद का समय था वही, ईश्वरीय गुणों से जिसकी रचना हुई। स्नेह के सभी भावों से युक्त, प्रकृति की अलंकृत संरचना हुई। जब हुई थी वह उसके परिवार में, लक्ष्मी का संदर्भ दिया था सबने। हताश मन से समाज को, बस वह सोचे जा रही है। क्या देवी का संदर्भ, सच में समाज समझ पा रहा है। पल पल बढ़ती हुई वह, अपने कष्ट को सोच रही है। समाज के रूढ़िवादी दृष्टिकोण को, वह अब समझ रही है। त्रेता में सीता, द्वापर में द्रौपदी ! सबका हाल सोच रही है। कलयुग के समाज के आईने में, स्वयं का प्रतिबिंब देख रही है। लक्ष्मी का संदर्भ पाकर, क्यों वह अब कोसे जा रही है। आखिर झूठे सम्मान का भाव दिखा कर, वो छली जा रही है। समाज की विषमता को समझकर, वो बस लड़ती जा रही है। अपनी इच्छाओं को दबा कर, वह जीवन पार की जा रही है। उसकी इच्छाओं का वास्तविक सम्मान कर, वह आस लगाए जा रही है। अपने विचारों में उलझकर, वह हताश हुई जा रही है। भविष्य की चिंता में, न वह बढ़ पा रही है। समाज के विभिन्न प्रसंगों से, अपमानित हुई जा रही है। चरित्र की पराकाष्ठा का प्रमाण, प्रत्येक क्षण दिए जा रही है। लक्ष्मी के संदर्भ की आस का, आशय में मन में संजोए जा रही है। आकाश से ऊंचे गौरवगान के लिए, स्वर दिए जा रही है। बस बढ़कर कुछ कर पायें, वह दिखाने का संकल्प लिए जा रही है। लक्ष्मी, अहिल्या आदि के चरित्र प्रमाणों से, खुद को दृढ़ किए जा रही है। ©Ajay Shrivastava "

Girl quotes in Hindi आनंद का समय था वही, ईश्वरीय गुणों से जिसकी रचना हुई। स्नेह के सभी भावों से युक्त, प्रकृति की अलंकृत संरचना हुई। जब हुई थी वह उसके परिवार में, लक्ष्मी का संदर्भ दिया था सबने। हताश मन से समाज को, बस वह सोचे जा रही है। क्या देवी का संदर्भ, सच में समाज समझ पा रहा है। पल पल बढ़ती हुई वह, अपने कष्ट को सोच रही है। समाज के रूढ़िवादी दृष्टिकोण को, वह अब समझ रही है। त्रेता में सीता, द्वापर में द्रौपदी ! सबका हाल सोच रही है। कलयुग के समाज के आईने में, स्वयं का प्रतिबिंब देख रही है। लक्ष्मी का संदर्भ पाकर, क्यों वह अब कोसे जा रही है। आखिर झूठे सम्मान का भाव दिखा कर, वो छली जा रही है। समाज की विषमता को समझकर, वो बस लड़ती जा रही है। अपनी इच्छाओं को दबा कर, वह जीवन पार की जा रही है। उसकी इच्छाओं का वास्तविक सम्मान कर, वह आस लगाए जा रही है। अपने विचारों में उलझकर, वह हताश हुई जा रही है। भविष्य की चिंता में, न वह बढ़ पा रही है। समाज के विभिन्न प्रसंगों से, अपमानित हुई जा रही है। चरित्र की पराकाष्ठा का प्रमाण, प्रत्येक क्षण दिए जा रही है। लक्ष्मी के संदर्भ की आस का, आशय में मन में संजोए जा रही है। आकाश से ऊंचे गौरवगान के लिए, स्वर दिए जा रही है। बस बढ़कर कुछ कर पायें, वह दिखाने का संकल्प लिए जा रही है। लक्ष्मी, अहिल्या आदि के चरित्र प्रमाणों से, खुद को दृढ़ किए जा रही है। ©Ajay Shrivastava

स्त्री- एक स्पर्श और एक स्पर्श पहचान

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