भागता रही जीवन के जिस प्यारे से अनुभव से,
वो उस शख्श ने खोजा मुझमें,
खुदसे ही मिलवाया ख़ुदको,
शुक्रिया करू या स्वीकार करू उसको,
इस प्रेम के काबिल पाया मुझको,
मैं ख़ुद को कोरा काग़ज बनाने की ज़िद में थी,
पर उसने रंगीन सी यादें दे दी,
मैं तो यूँही बैठी थी ख़ुदको वैरागी समझकर... -Bharti Prajapat
©Bharti Prajapat
मैं तो यूँही बैठी थी ख़ुदको वैरागी समझकर...
-Bharti Prajapat
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