परेशान रात, दिल में मचलते ज़ज्बात, उदासी का आलम, खामोश हम और तुम, ना कुछ कह पाए ना कुछ सुन पाए, बेबस और लाचार एक दूसरे को तकतें रहे , अकेला तन्हा चांद भी है आज, तारे भी नहीं टिमटिमा रहे, जहां देखो बस अंधेरा ही अंधेरा, एक घना सन्नाटा, ख़ामोशी की चादर ओढ़े हुए यह घनी काली रात जाने कब तक जगाए हमको यही सोच कर परेशान हैं हम, कल भी ऐसी ही कटी थी रात, ना नींद आयी ना सोये हम आज भी कुछ वही मंज़र है
©Abhishek
# खामोश तन्हा रात