कई रंग हैं जिंदगी के इक रंग है बंदगी का मुझे सदा ही मिला मंज़र तिशनगी का मैंने दिन को रात से जुदा होते देखा है भला नशे की प्यालियों मेँ कहाँ नशा होता है लोग कहते हैं मैं डूब गया देखा हैं मैंने भी उनको करीब से बातों मेँ उनकी सिर्फ कहकशा होता है जिंदगी और कुछ भी नहीं बस अनलिखा तमाशा होता है l
©PANKAJ BATHLA
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