ख़ूबसूरत ना श्रृंगार है आंखों में, ना रही बोली में

"ख़ूबसूरत ना श्रृंगार है आंखों में, ना रही बोली में जान। जब तुम लौट गए पिया, शेष न रही पहचान। - बेचैन ख़्वाब"

 ख़ूबसूरत ना श्रृंगार है आंखों में,
ना रही बोली में जान।
जब तुम लौट गए पिया,
शेष न रही पहचान।

- बेचैन ख़्वाब

ख़ूबसूरत ना श्रृंगार है आंखों में, ना रही बोली में जान। जब तुम लौट गए पिया, शेष न रही पहचान। - बेचैन ख़्वाब

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