The Nomad
धीरे धीरे सीख रहा हूं ख्वाहिशों को मारना
धीरे धीरे सीख रहा हूं इस वक़्त को काटना
कुछ है जो अब भी सीखना बाकी है
एक सफर है जो अब भी जीना बाकी है
सफर एक जंगल का जिसे हम कहते है "तौर ए ज़िंदगी", कहने को यहां सुकूं बहुत है पर यहां कौन बैठता है सुकूं से अब
सब मशरूफ है कहीं ना कहीं एक अनजानी सी दौड़ में
जीतने की होड़ में, राही बनने की चाह रखता हूं इस जंगल की राहों का
ना जाने क्यूं भटक में जाता हूं