ये जो तिलमिला रहे हो घर में गिरफ्त हो कर कभी सोचा | हिंदी कविता

"ये जो तिलमिला रहे हो घर में गिरफ्त हो कर कभी सोचा है भाग कर जाओगे कहाँ हर गली हर शहर में मौत का मंजर छाया है तुम खुद को छूपाओगे कहाँ जिंदा रहे तो मौके मिलेंगे हजार वक्त है अभी सम्भाल लो खुद को एक बार तुम्हारी एक गलती भारी पर सकती है तुम्हारे अपनो पर भी गर खो दिया कोई अपना फिर उसको पाओगे कहाँ।"

 ये जो तिलमिला रहे हो घर में गिरफ्त हो कर
कभी सोचा है भाग कर जाओगे कहाँ 
हर गली हर शहर में मौत का मंजर छाया है 
तुम खुद को छूपाओगे कहाँ 
जिंदा रहे तो मौके मिलेंगे हजार 
वक्त है अभी सम्भाल लो खुद को एक बार 
तुम्हारी एक गलती भारी पर सकती है तुम्हारे अपनो पर भी
गर खो दिया कोई अपना फिर उसको पाओगे कहाँ।

ये जो तिलमिला रहे हो घर में गिरफ्त हो कर कभी सोचा है भाग कर जाओगे कहाँ हर गली हर शहर में मौत का मंजर छाया है तुम खुद को छूपाओगे कहाँ जिंदा रहे तो मौके मिलेंगे हजार वक्त है अभी सम्भाल लो खुद को एक बार तुम्हारी एक गलती भारी पर सकती है तुम्हारे अपनो पर भी गर खो दिया कोई अपना फिर उसको पाओगे कहाँ।

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