खुद में गुण दिखते है,औरों को दोष देना आसान,
लोग यहाँ पर मृत हैं, किन्तु जीवित हैं पासान..
उचित अनुचित का भेद नहीं, स्थिल पड़ा समाज,
न्याय हेतू लड़ने वालों की, ठंडी पड़ी आवाज..
ऊँच-नीच की सीमा बड़ी हैं कोई नहीं समान,
मरते हैं लोग जात-पात पर, नगर बना शमशान..
भगवान सभी के एक, मनुष्य में कौन निकले भेद,
सबको समान अधिकार दो वर्ना,अन्त में होगा खेद..
निर्णय लेने से डरते कायर, वीर को कैसा भय,
जो समाजिक कुरीतियों से लड़ें,निडर,अजय,अभय..
एक ही छत्र के नीचे बैठे, सबको मिले समान छाया,
सम्यक सहयोग हो सबका, बने समाज की सुदृढ काया..
©Bhavesh Thakur Rudra
#Society