पिंजरे के पंछी नहीं दूर आकाश छू जाना है कर लिया है | हिंदी शायरी

"पिंजरे के पंछी नहीं दूर आकाश छू जाना है कर लिया है अब आग़ाज हमने सारा गगन नाप के आना है याद रखेगा जहान सारा कुछ ऐसा कर दिखाना है बुलंद कर लेनी है शख्शियत हमें यूं अपनी अब तो अपने जुनून को अंजाम तक ही लाना है ©तृप्ति"

 पिंजरे के पंछी नहीं
दूर आकाश छू जाना है
कर लिया है अब आग़ाज हमने
सारा गगन नाप के आना है
याद रखेगा जहान सारा 
कुछ ऐसा कर दिखाना है
बुलंद कर लेनी है 
शख्शियत हमें यूं अपनी
अब तो अपने जुनून को 
अंजाम तक  ही लाना है

©तृप्ति

पिंजरे के पंछी नहीं दूर आकाश छू जाना है कर लिया है अब आग़ाज हमने सारा गगन नाप के आना है याद रखेगा जहान सारा कुछ ऐसा कर दिखाना है बुलंद कर लेनी है शख्शियत हमें यूं अपनी अब तो अपने जुनून को अंजाम तक ही लाना है ©तृप्ति

#आग़ाज

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