मुराद न की न तमन्ना थी।
तेरे लिए न कभी आरज़ू की थी।
तू एक ऐसा नायाब तोहफा है।
जो भगवान के आरज़ू से मिला है।
मैं यूंही कभी सोचती हूं
तो लगता यही है।
हम जो मांगते है।
उससे कहीं ज्यादा वो देता है।
बस यही लगता है।
कभी यूही रिश्ते नहीं बनते
एक रिश्ता हम सिद्दत से चाहते।
और एक वो नवाजता है।
बड़ा ही मेहरबान निकला वो।
जिसे हम नाशुक्रा समझते थे।
यूंही बड़ी शोकियोसे तुम्हें पाला है।
बड़ी खूबसूरती नवाजा है तुझे।
सोचती हूं शुक्र उसका करु।
जिसने मिलाया है मुझे
या उनका करु जिन्होने सवारा है तुझे।
🙏🙏🙏🙏🙏
सरोज