सुकून ए कल्ब नूर ए नज़र ओ मेरी जान तू है किधर? | हिंदी शायरी

"सुकून ए कल्ब नूर ए नज़र ओ मेरी जान तू है किधर? शहर शहर, और गांव गांव तुम्हें तलाश रही मेरी नज़र तेरे होने से मुझे सुकून था बता न सकूंगा किस कदर तिरे बिना है मुश्किल बहुत मेरी जिंदगी का यह सफर तेरी याद हमेशा आती है मैं सफर रहूँ या फिर हजर तुझे पाने की कोशिश में हूँ मैंने छोड़ी नहीं कोई कसर तुझे पा लूंगा मैं एक दिन इस बात की है मुझे खबर ©Abdullah Rifat"

 सुकून ए कल्ब नूर ए नज़र
 ओ मेरी जान तू  है किधर? 

शहर शहर, और गांव गांव
तुम्हें तलाश रही मेरी नज़र

तेरे होने  से मुझे सुकून था
बता न सकूंगा किस  कदर

तिरे बिना है मुश्किल बहुत
मेरी जिंदगी  का यह सफर

तेरी  याद  हमेशा  आती है
मैं सफर रहूँ या फिर हजर

तुझे पाने की कोशिश में हूँ
मैंने छोड़ी नहीं कोई कसर

तुझे पा  लूंगा मैं  एक दिन
इस बात की  है मुझे खबर

©Abdullah Rifat

सुकून ए कल्ब नूर ए नज़र ओ मेरी जान तू है किधर? शहर शहर, और गांव गांव तुम्हें तलाश रही मेरी नज़र तेरे होने से मुझे सुकून था बता न सकूंगा किस कदर तिरे बिना है मुश्किल बहुत मेरी जिंदगी का यह सफर तेरी याद हमेशा आती है मैं सफर रहूँ या फिर हजर तुझे पाने की कोशिश में हूँ मैंने छोड़ी नहीं कोई कसर तुझे पा लूंगा मैं एक दिन इस बात की है मुझे खबर ©Abdullah Rifat

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