जिन कदमों को
आगे बढ़ने की आदत है।
कांटों पर ध्यान नहीं देता,
घटा या बढ़ा।
कदम बढ़ाते जाते हैं,
क्यों ना;
हर क़दम पर
नया कांटा मिला।
सबका अपना संस्कार है
आसां कहां फूल बनना
कांटा को कांटे से पहचान है।
पर वो कदम रुका कहां
जिसमें आगे बढ़ने की चाह है।
कहां कहां उभरोगे कांटे बन,
इस उपवन के बाद भी;
कई सुंदरवन हैं।
©#suman singh rajpoot
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