बचपन और मेला ज़िन्दगी उलझनों का,है झमेला बहोत। वो | हिंदी Shayari

"बचपन और मेला ज़िन्दगी उलझनों का,है झमेला बहोत। वो याद आता दसहरा का मेला बहोत। मंच मिल के सभी जो सजाते थे हम। साथ चौपाइयां कितना गाते थे हम।। हाथ ले के धनुष थे करते लीला बहोत। वो याद आता दसहरा का मेला बहोत। वो राम लीला का इक इक पल याद है। मन लुभावन जो लक्ष्मण का संवाद है।। जो देखना सीखना फिर है खेला बहोत। वो याद आता दसहरा का मेला बहोत।। हम भूल जाते किसी से,भी जो राण हो। मिल के कहते थे हम सबका कल्याण हो। जब मिलते थे सखी और सहेला बहोत। वो याद आता दसहरा का मेला बहोत। ©Anand singh बबुआन"

 बचपन और मेला  ज़िन्दगी उलझनों का,है झमेला बहोत।
वो याद आता दसहरा का मेला बहोत।

मंच मिल के सभी जो सजाते थे हम।
साथ चौपाइयां कितना गाते थे हम।।
हाथ ले के धनुष थे करते लीला बहोत।
वो याद आता दसहरा का मेला बहोत।

वो राम लीला का इक इक पल याद है।
मन लुभावन जो लक्ष्मण का संवाद है।।
जो देखना सीखना फिर है खेला बहोत।
वो याद आता दसहरा का मेला बहोत।।

हम भूल जाते किसी से,भी जो राण हो।
मिल के कहते थे हम सबका कल्याण हो।
जब मिलते थे सखी और सहेला बहोत।
वो याद आता दसहरा का मेला बहोत।

©Anand singh बबुआन

बचपन और मेला ज़िन्दगी उलझनों का,है झमेला बहोत। वो याद आता दसहरा का मेला बहोत। मंच मिल के सभी जो सजाते थे हम। साथ चौपाइयां कितना गाते थे हम।। हाथ ले के धनुष थे करते लीला बहोत। वो याद आता दसहरा का मेला बहोत। वो राम लीला का इक इक पल याद है। मन लुभावन जो लक्ष्मण का संवाद है।। जो देखना सीखना फिर है खेला बहोत। वो याद आता दसहरा का मेला बहोत।। हम भूल जाते किसी से,भी जो राण हो। मिल के कहते थे हम सबका कल्याण हो। जब मिलते थे सखी और सहेला बहोत। वो याद आता दसहरा का मेला बहोत। ©Anand singh बबुआन

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