कविता से बेहतर कुछ न कुछ रहेगा ही
ऐसा किसी ने कहा था कभी
पत्थरों से शब्द निकलकर रोए
गिड़गिड़ाए मनुष्य कि छाती पर
भूख देखने वाला लिखता क्यों है
और भूखा बिन लिखे सोता क्यों है
ऐसा सुनकर किताबों के पेट से
कुछ रूपये झांके
बेच आओ हमें बाजार में
कविताओं का क्या मिलेगा
किसी की हंसी किसी का तंज मिलेगा
रूपयों के बदले पेट तो भरेगा
-प्रेरित कौशिक
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