वो बनाता रहा मनगढ़ कहानियां मेरी, लेखक बनने के प्र | हिंदी विचार

"वो बनाता रहा मनगढ़ कहानियां मेरी, लेखक बनने के प्रयास में. हकीकत जो है उसे कोई बया नहीं करता ,जब कोई पूछे हुलिया तुम्हारा, वह कमियों से नकाब ढक देता हैं। मेने अपनी कमियां उसकी थाली में जानबूझकर परोसी थी। क्योकी थाली उसकी गंदी थी मेरी नहीं, जैसी थाली उसे वैसा ही खाना मिलता है।।चलो छोड़ो उसकी बातें ,अब तुम तुम्हारी बताओ तुमने तो अभी तक मुझे इतना भी नहीं समझा होगा कि अगर मैं पूछू कि मैं कैसा हूं ,तो तुम कहो की इतनी बात कहा हुइ है अभी हमारी।। जवाब दे सकते थे तुम मेरे सवाल का पर शायद तुम्हें भी भूख लगी थी, कुछ मेरे बारे में जानने की।। पर तुम उस झूठी थाली में जा कर बैठे जिस थाली में मैंने परोसी तो हकीकत थी,पर थाली जुठी होने के कारण ,हकिकत कमियों मे बदल गयी।। अगली बार जब भूख लगे कुछ जानने के लिए, तो जरा मेरी थाली में आकर बैठना। मैं यकीन दिलाता हूं तुम्हें .मेरी परोंसी हुई हकीकत तुम्हे भी स्वादिष्ट लगेगी।।।ओर फिर से हमारी बाते शुरू होंगी ।।ओर फिर वही सवाल......(.कि मे कैसा हु।।) ।।।।।।❤अब जवाब तुम्हारा❤ #क़लम-आशीष सोनी"

 वो बनाता रहा मनगढ़ कहानियां मेरी, लेखक बनने के प्रयास में. हकीकत जो है उसे कोई बया नहीं करता ,जब कोई पूछे हुलिया तुम्हारा, वह कमियों से नकाब ढक देता हैं। मेने अपनी कमियां उसकी थाली में जानबूझकर परोसी थी। क्योकी थाली उसकी गंदी थी मेरी नहीं, जैसी थाली उसे वैसा ही खाना मिलता है।।चलो छोड़ो उसकी बातें ,अब तुम तुम्हारी बताओ तुमने तो अभी तक मुझे इतना भी नहीं समझा होगा कि अगर मैं पूछू कि मैं कैसा हूं ,तो तुम कहो की इतनी बात कहा हुइ है अभी हमारी।। जवाब दे सकते थे तुम मेरे सवाल का पर शायद तुम्हें भी भूख लगी थी, कुछ मेरे बारे में जानने की।। पर तुम उस झूठी थाली में जा कर बैठे जिस थाली में मैंने परोसी तो हकीकत थी,पर थाली जुठी होने के कारण ,हकिकत कमियों मे बदल गयी।। अगली बार जब भूख लगे कुछ जानने के लिए, तो जरा मेरी थाली में आकर बैठना। मैं यकीन दिलाता हूं तुम्हें .मेरी परोंसी हुई हकीकत तुम्हे भी स्वादिष्ट लगेगी।।।ओर फिर से हमारी बाते शुरू होंगी ।।ओर फिर वही सवाल......(.कि मे कैसा हु।।) ।।।।।।❤अब जवाब तुम्हारा❤
#क़लम-आशीष सोनी

वो बनाता रहा मनगढ़ कहानियां मेरी, लेखक बनने के प्रयास में. हकीकत जो है उसे कोई बया नहीं करता ,जब कोई पूछे हुलिया तुम्हारा, वह कमियों से नकाब ढक देता हैं। मेने अपनी कमियां उसकी थाली में जानबूझकर परोसी थी। क्योकी थाली उसकी गंदी थी मेरी नहीं, जैसी थाली उसे वैसा ही खाना मिलता है।।चलो छोड़ो उसकी बातें ,अब तुम तुम्हारी बताओ तुमने तो अभी तक मुझे इतना भी नहीं समझा होगा कि अगर मैं पूछू कि मैं कैसा हूं ,तो तुम कहो की इतनी बात कहा हुइ है अभी हमारी।। जवाब दे सकते थे तुम मेरे सवाल का पर शायद तुम्हें भी भूख लगी थी, कुछ मेरे बारे में जानने की।। पर तुम उस झूठी थाली में जा कर बैठे जिस थाली में मैंने परोसी तो हकीकत थी,पर थाली जुठी होने के कारण ,हकिकत कमियों मे बदल गयी।। अगली बार जब भूख लगे कुछ जानने के लिए, तो जरा मेरी थाली में आकर बैठना। मैं यकीन दिलाता हूं तुम्हें .मेरी परोंसी हुई हकीकत तुम्हे भी स्वादिष्ट लगेगी।।।ओर फिर से हमारी बाते शुरू होंगी ।।ओर फिर वही सवाल......(.कि मे कैसा हु।।) ।।।।।।❤अब जवाब तुम्हारा❤ #क़लम-आशीष सोनी

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