१
इस कदर टूटा था ,
कि उठना नामुंकिन सा था
यूं पहले कभी ऐसा हुआ न था
कि मैंने रातों को सोया न था
इतना बैचैन था दिल !
कि पल पल सहम जाते थे
गुस्सा करके भी,
पिघल जाते थे
पर उसका बदलना
मुझे इस तरह तोड़ गया
मानो कोई बीच भवर में ,
छोड़ गया !
©बद्रीनाथ✍️
poem part १