मख़मल से नीचे आना पड़ सकता है,
रूखा-सूखा भी खाना पड़ सकता है।
अपने छोड़े हमने तेरे ख़ातिर, पर,
अब गैरों को अपनाना पड़ सकता है।
जब रौशन थे तो काफ़ी इतराए हम,
अब दुश्मन के दर जाना पड़ सकता है।
तुझ तक आने का रस्ता ढूंढ रहे सब,
उनको थोड़ा भटकाना पड़ सकता है।
कब तक गुमराह करोगे सबको 'सोमेश',
उसको सबसे मिलवाना पड़ सकता है।
-- सोमेश
©Somesh Gour
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