मेरी झूठी हसी को भी पहचान लेती है , वो मेरी मां है | हिंदी कविता

"मेरी झूठी हसी को भी पहचान लेती है , वो मेरी मां है जो मेरे दर्द को जुबान देती है । कहीं बाया ना कर पाता हूं हाल ये दिल जनाब, पर मां मेरे हर एक हर्फ को जान लेती है । मैं टूट जाता हूं अकसर गर्दिशे जमाने में , पर मां मुझे बिखरने से संभाल लेती है । ©dil_ke_baat_kalam_se"

 मेरी झूठी हसी को भी पहचान लेती है ,
वो मेरी मां है जो मेरे दर्द को जुबान देती है ।

कहीं बाया ना कर पाता हूं हाल ये दिल जनाब,
पर मां मेरे हर एक हर्फ को जान लेती है ।

मैं टूट जाता हूं अकसर गर्दिशे जमाने में ,
पर मां मुझे बिखरने से संभाल लेती है ।

©dil_ke_baat_kalam_se

मेरी झूठी हसी को भी पहचान लेती है , वो मेरी मां है जो मेरे दर्द को जुबान देती है । कहीं बाया ना कर पाता हूं हाल ये दिल जनाब, पर मां मेरे हर एक हर्फ को जान लेती है । मैं टूट जाता हूं अकसर गर्दिशे जमाने में , पर मां मुझे बिखरने से संभाल लेती है । ©dil_ke_baat_kalam_se

#MothersDay

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