"दिल के पुराने “इल्ज़ाम-ए-मर्ज़”ने अभी रुखसत भी नहीं ली
और तुमने उसपे नए इल्ज़ामात की पट्टी चढ़ा दी
कि क्या कहते हो.......??
हर बार गलती मेरी है ,
तो , सुनो ना जाना कभी अपने अंदर भी झांको ना
यूं तो इलज़ाम लगाना अच्छा लगता है ,
मगर कभी खुद महसूस करो ना जाना ।
©Nazish Khan"