मंज़िल की तलाश में, राहों पर यूँ ही चले जाते हैं, | हिंदी कविता

"मंज़िल की तलाश में, राहों पर यूँ ही चले जाते हैं, कभी हंसें, कभी रोए, और कभी गिरकर उठे, पर कोशिश नई हर रोज़ किए जाते हैं... समय इतने महा बलवान की, हर रोज़ पूजा किए जाते हैं, कभी अच्छा, कभी बुरा, और कभी नदी के बहाव सा, जीने को हर पल इसका हम प्रयास किए जाते हैं... दूसरों को हंसता देख, अपना दुख यूँ ही पिये जाते हैं, कभी लड़ कर, कभी सुनकर, और कभी जी भर के खुलकर, ज़िन्दगी हम यूँ ही जीए जाते हैं... ©Garima nandwal"

 मंज़िल की तलाश में, 
राहों पर यूँ ही चले जाते हैं, 
कभी हंसें, कभी रोए,
और कभी गिरकर उठे, 
पर कोशिश नई हर रोज़ किए जाते हैं... 

समय इतने महा बलवान की, 
हर रोज़ पूजा किए जाते हैं, 
कभी अच्छा, कभी बुरा, 
और कभी नदी के बहाव सा, 
जीने को हर पल इसका 
हम प्रयास किए जाते हैं... 

दूसरों को हंसता देख, 
अपना दुख यूँ ही पिये जाते हैं, 
कभी लड़ कर, कभी सुनकर,
और कभी जी भर के खुलकर, 
ज़िन्दगी हम यूँ ही जीए जाते हैं...

©Garima nandwal

मंज़िल की तलाश में, राहों पर यूँ ही चले जाते हैं, कभी हंसें, कभी रोए, और कभी गिरकर उठे, पर कोशिश नई हर रोज़ किए जाते हैं... समय इतने महा बलवान की, हर रोज़ पूजा किए जाते हैं, कभी अच्छा, कभी बुरा, और कभी नदी के बहाव सा, जीने को हर पल इसका हम प्रयास किए जाते हैं... दूसरों को हंसता देख, अपना दुख यूँ ही पिये जाते हैं, कभी लड़ कर, कभी सुनकर, और कभी जी भर के खुलकर, ज़िन्दगी हम यूँ ही जीए जाते हैं... ©Garima nandwal

#Zindagi_Ka_Safar

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