कितना फर्क़ है हर आदमी के मसलों में दौस्तों, कोई | हिंदी शायरी

"कितना फर्क़ है हर आदमी के मसलों में दौस्तों, कोई परेशां है मुद्तों से _ किसी को मिटाने के लिए, कोई मांग रहा दुआ फख्त _ सलामती की अपनी! [अरुण प्रधान] ©Arun pradhan"

 कितना फर्क़ है हर आदमी के मसलों में दौस्तों, 
कोई परेशां है मुद्तों से _ किसी को मिटाने के लिए, कोई मांग रहा दुआ फख्त _
सलामती की अपनी! 
[अरुण प्रधान]

©Arun pradhan

कितना फर्क़ है हर आदमी के मसलों में दौस्तों, कोई परेशां है मुद्तों से _ किसी को मिटाने के लिए, कोई मांग रहा दुआ फख्त _ सलामती की अपनी! [अरुण प्रधान] ©Arun pradhan

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