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मय को हाथ लगाता नहीं,
पर साक़ी जो जाम भर दे, तो फिर उसे छोड़ पाता नहीं।
जिद पर आ जाऊं तो उसकी कलाई थाम लूँ,
और फिर कभी खुद से छुड़ा पाता नहीं।
उसकी हंसी में है मेरे होश और बेहोशी का हर लम्हा छुपा,
मैं देखूँ उसे, वो हंस दे, तो दिल उसका तोड़ पाता नहीं।
उसकी खुशबू में जैसे मय का हर कतरा घुला हो,
उसकी रूह से उठता है वो नशा, जो कभी उतर पाता नहीं।
©Navneet Thakur
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मय को हाथ लगाता नहीं, पर साक़ी जो जाम भर दे, तो फिर उसे छोड़ पाता नहीं,
जिद पर आ जाऊं तो उसकी कलाई थाम लूँ, और फिर कभी खुद से छुड़ा पाता नहीं।
उसकी हंसी में है मेरे होश और बेहोशी का हर लम्हा छुपा,
मैं देखूँ उसे, वो हंस दे, तो दिल उसका तोड़ पाता नहीं।
उसकी खुशबू में जैसे मय का हर कतरा घुला हो,