कोई किस्त है जो अदा नहीं है,
साँस बाकी है और हवा नहीं है !
नसीहतें, सलाहें, हिदायतें तमाम,
प्रिस्क्रिप्शन हैं पर दवा नहीं है !
आँख भी ढक लीजिये संग मुँह के,
मंजर सचमुच अच्छा नहीं है...!.
हरेक शामिल है इस गुनाह में,
कुसूर किसका है पता नहीं है !
©Hans gunjal