कितना शांत होता है ना अंधेरा समीप अपने गहरे राज़ छ | हिंदी कविता

"कितना शांत होता है ना अंधेरा समीप अपने गहरे राज़ छुपाए रहता भी उन खंडहरों में है रोशनियों की जहा आंच ना आए शांत शीतल स्वभाव उसका,भला डर कैसा जागो अपने आप में तोह अंधेरा ही अंधेरा नजर आता है फिर अंधेरों का दोष कैसा? क्या उजालों की कीमत होती अंधेरा ही ना होता जब क्या शामें मस्तानी होती अंधेरा ही ना होता जब क्या राते दीवानी होती अंधेरा ही ना होता जब पूछो सवाल खुदसे तोह क्या कुछ बयां नहीं होता कभी खामोशियां ही बोल जाती है जवाब हम से बया ना होता ©Yãsh BøRâ"

 कितना शांत होता है ना अंधेरा
समीप अपने गहरे राज़ छुपाए
रहता भी उन खंडहरों में है
रोशनियों की जहा आंच ना आए
शांत शीतल स्वभाव उसका,भला
डर कैसा जागो अपने आप में तोह
अंधेरा ही अंधेरा नजर आता है 
फिर अंधेरों का दोष कैसा?
क्या उजालों की कीमत होती 
अंधेरा ही ना होता जब 
क्या शामें मस्तानी होती 
अंधेरा ही ना होता जब 
क्या राते दीवानी होती 
अंधेरा ही ना होता जब
पूछो सवाल खुदसे तोह 
क्या कुछ बयां नहीं होता 
कभी खामोशियां ही बोल जाती है 
जवाब हम से बया ना होता

©Yãsh BøRâ

कितना शांत होता है ना अंधेरा समीप अपने गहरे राज़ छुपाए रहता भी उन खंडहरों में है रोशनियों की जहा आंच ना आए शांत शीतल स्वभाव उसका,भला डर कैसा जागो अपने आप में तोह अंधेरा ही अंधेरा नजर आता है फिर अंधेरों का दोष कैसा? क्या उजालों की कीमत होती अंधेरा ही ना होता जब क्या शामें मस्तानी होती अंधेरा ही ना होता जब क्या राते दीवानी होती अंधेरा ही ना होता जब पूछो सवाल खुदसे तोह क्या कुछ बयां नहीं होता कभी खामोशियां ही बोल जाती है जवाब हम से बया ना होता ©Yãsh BøRâ

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