जो होश उड़ा गया पल भर में, वो भी एक इंसान आम ही तो है... अब क्या उसके इशारों को पढ़ने बैठे हम ? हमें और ज़रूरी काम भी तो है... ये चार-चे हरफ कितने कमाल हो गए हैं? जोड़कर इन्हें बनाता है उनका नाम ही तो है... फ़ारिग़ वक़्त में बैठ कर कागज़ क़लम उठा लेते हैं, ये सब उनसे मिलने का अंजाम ही तो है... और यू तो इज़हार शर-ए-आम भी कर डालें हम, लेकिन हमपर शरीफ़ होने का एक इल्ज़ाम भी तो है...
©T4_tanya_ Nojoto