"श्लोक-
वदनम् प्रसाद सदनम्, सदयम् हृदयम् सुधमुचो वाचः।
करणम् परोपकरणम्, ऐषां तेषानु ते वन्द्या।।
अर्थात्- जिनके मुखमण्डल पर सदैव प्रसन्नता विराजमान रहती है, जो अपने जीवन में शान्त, सन्तुष्ट और प्रसन्नचित्त रहते हैं। -:मित्रों:-
"मुस्कान और मदद ये दो ऐसे इत्र हैं जिन्हें जितना अधिक आप दूसरों पर छिड़केंगे, उतने ही सुगन्धित आप स्वंय होंगे...!!!"
जय श्री कृष्णा..."