तिल-तिल करके जब जली उमा
कब शिव तपन से बच सके?
मजबूर बैठे सब वहां
कुछ सोचकर ना कह सके;
रूप नीलकंठ का जल रहा
अब रोष सबपर बह जाएगा,
प्रेम विजय पर था उनका
अब काम कुछ ना कह पाएगा।
वो जल रही, वो तप रही
और धरा विभूषण खो रही,
मदमस्त शिव ने हुंकार ली
तब भद्र ने धरती फाड़ ली।
शिव का यह काज सबल करना
हर शक्ति को दुर्बल करना,
काली को भी अब होश कहां?
सती जली है रोष वहां।
देव, निशाचर, सैनिक सबको
रणचंडी ने फांस लिया,
काट गला फेंका कुंड में
भद्र ने अब जाकर चैन का सांस लिया।
पर रोष थमा ना शिव का अब भी
प्रेम ने मन में उफान लिया
उठाया शूल और चलें धरा पर
फिर सती के शव को थाम लिया।
शिव वैरागी उड़ चले गगन में
सती-सती चिल्लाते हैं,
कहां गई तुम, क्यों गई तुम?
कह-कहकर उन्हें बुलाते हैं।
शक्ति के बिन शिव कहां अमर है?
वापस आ जाओ हे प्रिए,
शिव हूं, शव हो जाऊंगा
तुम बिन ना मेरा आधार प्रिए।
शिव धर्ता जग के, कर्ता जग के
उन बिन प्रलय आ जाएगा,
गुहार भरी देवों ने नारायण से
सोचो कौन कहां पर जाएगा!
विष्णु ने फिर चक्र उठाया
बोला इक्यावन भाग कर दो,
शिव तप रहे हैं सती के बिन
अब शांत इनकी आग कर दो।
चक्र ने अपना काम किया
सती का इक्यावन भाग किया,
सब शक्तिपीठ बन गए धरा पर
यह शिव के तपन पर काम किया।
पर शिव वैरागी हो चले
ख़ुद को ख़ुद से वो भूल चले,
कैलाश छोड़ सब ओर गए
सती में ख़ुद को घोल गए।
एक प्रेम कथा हुआ ऐसा भी
जिसमें शिव को रोना आया था,
शक्ति मजबूर हो चली थीं जिसमें
और जग ने रोया गया था।
©Deep Kushin
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