White पल्लव की डायरी लागत गाँवो में खेतों से निकलत | हिंदी कविता

"White पल्लव की डायरी लागत गाँवो में खेतों से निकलती नही धंधे पानी की सूरत वहाँ जमती नही मेहनत की कीमत कोई लगती नही चल पड़ता है कारवाँ शहरों की ओर खो जाता है चमक दमक में खुद अपना भाग्य आजमाता है कोई चढ़ता है तरक्की के आसमान कोई नॉकरी चाकरी तक रह जाता है पहचान यहाँ ,मतलब की है शहरों में कमीशन के बल पर फलता फूलता है इस तरह जीना जिसको आ गया वो ही सफलता की ओर बढ़ता जाता है प्रवीण जैन पल्लब ©Praveen Jain "पल्लव""

 White पल्लव की डायरी
लागत गाँवो में खेतों से निकलती नही
धंधे पानी की सूरत वहाँ जमती नही
मेहनत की कीमत कोई लगती नही
चल पड़ता है कारवाँ शहरों की ओर
खो जाता है चमक दमक में खुद
अपना भाग्य आजमाता है
कोई चढ़ता है तरक्की के आसमान
कोई नॉकरी चाकरी तक रह जाता है
पहचान यहाँ ,मतलब की है शहरों में
कमीशन के बल पर फलता फूलता है
इस तरह जीना जिसको आ गया
वो ही सफलता की ओर बढ़ता जाता है
                                                  प्रवीण जैन पल्लब

©Praveen Jain "पल्लव"

White पल्लव की डायरी लागत गाँवो में खेतों से निकलती नही धंधे पानी की सूरत वहाँ जमती नही मेहनत की कीमत कोई लगती नही चल पड़ता है कारवाँ शहरों की ओर खो जाता है चमक दमक में खुद अपना भाग्य आजमाता है कोई चढ़ता है तरक्की के आसमान कोई नॉकरी चाकरी तक रह जाता है पहचान यहाँ ,मतलब की है शहरों में कमीशन के बल पर फलता फूलता है इस तरह जीना जिसको आ गया वो ही सफलता की ओर बढ़ता जाता है प्रवीण जैन पल्लब ©Praveen Jain "पल्लव"

#Sad_Status कमीशन के बल पर फलता फूलता है शहर
#nojotohindipoetry

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