" पिता "
बच्चो और भूख के बीच का पूल होता है पिता ।
माँ का श्रृंगार और माथे का सिंदूर होता है पिता ।।
टूट्टी चप्पल पहनकर जो बेटे को नए जूते लाते है
फट्टी बनियान में रहकर अपनी बेटी को पाजेब दिलाते है ।।
अपनी ख्वाहिशो का गला घोटकर माँ को साड़ी लाते है ।
सारी परेशानियों को भुलाकर सबको खुश वो करते है ।।
पिता के कंधों पर बैठकर देखे दूर गाँव के सब मेले है ।
पिता साथ है तो बाजार के अपने सब खिलौने है ।।
"पिता" पिता है तो अनुभव की छत और दीवारे है ।
पिता ज़िन्दगी की कड़ी धूप में घनी छाँव है ।।
पिता ही तो सही और गलत को कान खीचकर समझाते है ।
पिता ही उंगली पकड़कर कठिन समय मे जीना सिखाते है ।।
©Lafz-E-Kumar
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