"हे प्रभु! पीर हरो इस सारे संसार की,
शीश हमारे है धरी पाप की गठरी भार की।
रोम-रोम में तू ही बसा पर कभी कोशिश न की मिलान की,
पूरी उम्र चिंता रही हमें बस माया के ही ध्यान की।
हाथ मिलाए पर दिल न मिलाए कैसे भरपाई हो ऐसे नुकसान की,
मंदिर और मस्जिद में फँसकर मुश्किल ही रही इंसान की।