रोते रोते कब तक मुस्कुराऊंगी कब में रातों में सुर | हिंदी विचार

"रोते रोते कब तक मुस्कुराऊंगी कब में रातों में सुरक्षित रास्तों पर चल पाऊंगी। कब अपने हक के लिए अपने घर में बोल पाऊंगी। मैं भी इंसान हूं कब तक दुनिया को समझा पाऊंगी। ©Saddam"

 रोते रोते कब तक मुस्कुराऊंगी 
कब में रातों में सुरक्षित रास्तों पर चल पाऊंगी।
कब अपने हक के लिए अपने घर में बोल पाऊंगी। मैं भी इंसान हूं 
कब तक दुनिया को समझा पाऊंगी।

©Saddam

रोते रोते कब तक मुस्कुराऊंगी कब में रातों में सुरक्षित रास्तों पर चल पाऊंगी। कब अपने हक के लिए अपने घर में बोल पाऊंगी। मैं भी इंसान हूं कब तक दुनिया को समझा पाऊंगी। ©Saddam

मैं भी इंसान हूं

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