संख्य है असंख्य तू|
चंद्र से सुशोभित
महाकाल है प्रचंड तू|
वैष्णव और ब्रह्मं तुम|
जीवन और जीवंत तुम
तुम सरल विराट तुम|
अंत और अनंत तुम|
तेज़ और अखंड तुम|
हिमालय सा ललाट और आंखे हैं समुद्र सी
देवों के प्रिय और दानवों के काल तुम|
कालो के काल महाकाल और प्रचंड तुम|
सर्प की जटाएं, सिंह जिसका आसन
मैं जिनकी करुं वंदना और अभिनंदन|
सभी शिव भक्तों को श्रावण मास की शुभकामनाएं|
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