*पानी से रिश्ते*
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कच्ची मिट्टी के घड़ों में भरे पानी से रिश्ते
बह जाते है अक्सर रिसते- रिसते ,
मरम्मत माँगते है, वक़्त दर वक़्त
नही तो बिखर जाते है घिसते- घिसते,
फिर एक मलाल सा रह जाता है
बादल भी थम जाते है गरज़ते- गरज़ते ,
वक़्त रहते, वक़्त दे दिया करो इन्हें
ये दूर निकल जाते है सरकते - सरकते,
हाथ आता नही फिर जो बीत गया
और उम्र बीत जाती है तरसते- तरसते,
फिर जब कभी याद आते है बीते लम्हें
तो आँखें भीग जाती है हँसते-हँसते,
दरख़्त यूँहीं तो फलदार नही बनता
कई दिन बीत जाते है उसे सींचते-सींचते,
रिश्ते हक़ीक़त है, इस फ़रेबी जहाँ में
इनके साथ कट जाएगा सफ़र आहिस्ते- आहिस्ते....
©shubham jain *parag*
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