जब में लिखती हूं
बेहद और बहुत सारा लिखती हूं
और शब्द मुझे ले चलते है मेरी उंगली पकड़कर मुझे अपने
खयालों कि दुनिया में
जहां में उनके साथ हस्ती खेलती हूं गुनगुनाती हूं मस्ती करती हूं
और फिर जब थक कर बैठ जाती हूं तो अतीत में खो जाती हूं
तब कुछ कविताएं कुछ रचनाए कुछ किस्से कुछ बातें कुछ यादें उभरने लगते है मेरे मस्तिष्क पटल पर...
जीने में फिर उतार लेती हूं मन के कोरे कागज़ पे।
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