कद्र तुम्हारे जज्बातों की नहीं सहाब तुम्हारे हैसि | हिंदी शायरी

"कद्र तुम्हारे जज्बातों की नहीं सहाब तुम्हारे हैसियत की होती है जिसका जितना बैंक बैलेंस उतनी उनकी हां जी होती है ©SarkaR"

 कद्र तुम्हारे जज्बातों की नहीं सहाब 
तुम्हारे हैसियत की होती है

जिसका जितना बैंक बैलेंस
उतनी उनकी हां जी होती है

©SarkaR

कद्र तुम्हारे जज्बातों की नहीं सहाब तुम्हारे हैसियत की होती है जिसका जितना बैंक बैलेंस उतनी उनकी हां जी होती है ©SarkaR

#पैसा

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