जिस राजनीति को काजल कहा जाता है कि, काजल के पर्वत | हिंदी कविता

"जिस राजनीति को काजल कहा जाता है कि, काजल के पर्वत पर चढ़ना , चढ़कर पार उतरना , बहुत कठिन है निष्कलंक रहकर के ये सब करना। पर जब जब आप सहारा देते इनका सिर सहलाते, जब जब इनको अपना कहकर अपने गले लगाते। तब तब मुझकों लगता है ये यह जीवन जी लेंगे , और नीलकंठ की तरह यहाँ का सारा विष पी लेंगे।"

 जिस राजनीति को काजल कहा जाता है कि,
 काजल के पर्वत पर चढ़ना , चढ़कर पार उतरना ,
बहुत कठिन है निष्कलंक रहकर के ये सब करना।
 पर जब जब आप सहारा देते इनका सिर सहलाते, 
जब जब इनको अपना कहकर अपने गले लगाते।
 तब तब मुझकों लगता है ये यह जीवन जी लेंगे ,
और नीलकंठ की तरह यहाँ का सारा विष पी लेंगे।

जिस राजनीति को काजल कहा जाता है कि, काजल के पर्वत पर चढ़ना , चढ़कर पार उतरना , बहुत कठिन है निष्कलंक रहकर के ये सब करना। पर जब जब आप सहारा देते इनका सिर सहलाते, जब जब इनको अपना कहकर अपने गले लगाते। तब तब मुझकों लगता है ये यह जीवन जी लेंगे , और नीलकंठ की तरह यहाँ का सारा विष पी लेंगे।

मोदीजी

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