आती-जाती ख्वाहिशों का मौसम देखा है ।
हंसती-खिलती आँखों को भी नम देखा है ।
मिले बुज़ुर्गों को इज़्ज़त उनका हक़ था,
हमने दुनिया को उनसे कुछ कम देखा है ।
अपने सुख से बढ़कर सबका सुख जाना,
अपने गम से बढ़कर सबका गम देखा है ।
रात किसी की हिज़्र में रोती है शायद,
सुबह को ओस की बूंदों से पूरनम देखा है ।
जीवन जख्मों की गर एक कहानी है,
उनका होना ज़ख्मों पर मरहम देखा है ।
तुम न अगर समझे मेरे ज़ज़्बातों को,
तुमने मेरी आँखों में कुछ कम देखा है ।
नीरज निश्चल
©where is master
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