कश्ती बता ना सके , जता ना सके हृदय की पीर मिटा ना सके भीतर - भीतर सिसक रही नयनो से नीर बहा ना सके युगों - युगों से प्रेम को तरसे प्रेम की तृषा बुझा ना सके विरह की धूप में जलती रही छांव मिलन की पा ना सके व्याकुल - व्याकुल रहे " धरा " अम्बर के समीप जा ना सके
©R K iccha