क्या खता थी हमारी ज़िन्दगी जीना हो गया भारी
मैं तो उन दरिंदो से अनजान थी
लावारिश थी मैं,
न हिन्दू थी न मुसलमान थी
इन दरिंदो के लिये तो हवस का सामान थी
मुझे तो उनमें दिखा था पिता और भाई
पर मुझमे उनको अपनी बेटी नज़र न आई
हे भगवान क्यों बनाई तुमने ये औरत जात
जब बचाना ही नही है रखकर अपना हाथ
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