ढलते हुए सूरज
की पलकों पर
नरम हाथ फेरकर कौन सुलाता है?
उसे ये कहकर सो जाओ
उठना है सुबह जल्दी तुम्हें
नहीं सुन पाते हम साँझ को
पंछियों की चहचाहट
ताकि लगा सकें पता कि
सब अपने अपने घौंसलों
में लौटे हैं कि नहीं अब तक
चाँद से कोई नहीं पूछता
युगों से किसकी खोज
में घूमता रहता है
आवारा लड़कों की तरह रातभर
अपने अलावा नहीं देख पाते
हम किसी का अकेलापन,
न जता पाते हैं किसी से अपनापन,
अपने दर्द से बढ़कर नहीं समझते
किसी और के दर्द को
शाम को ऑफिस से लौटते वक्त
ले आते हैं खाली टिफिन
में भरकर बस अगली सुबह की
व्यथायों और कुंठाओं को
अपने-अपने बैग में
©Deshraj Gurjar
#CrescentMoon