अपनी ख्वाहिशों का मैं खुद शिकार हूं, सच ऐ जिन्दगी

"अपनी ख्वाहिशों का मैं खुद शिकार हूं, सच ऐ जिन्दगी हां मैं ही तेरा गुनहगार हूँ। मुझे पता है तू कभी मेरा हो नहीं सकता, फिर भी क्यूं मैं तेरा ही तलबगार हूं। जाग जाता हूं तो सो जाता हूं आराम से, वरना हर समय तुझसे मिलने को बेकरार हूं। इस अनजान डर का कुछ तो इलाज होगा, वरना दुनियां के लिए तो मैं सरदार हूँ। थक गया हूँ इंतिहान देकर अब 'आनंद', जिंदगी अब तुझसे हो गया बेजार हूँ। - मुकेश आनंद ©मुकेश आनंद"

 अपनी ख्वाहिशों का मैं खुद शिकार हूं,
सच ऐ जिन्दगी हां मैं ही तेरा गुनहगार हूँ। 

मुझे पता है तू कभी मेरा हो नहीं सकता,
फिर भी क्यूं मैं तेरा ही तलबगार हूं। 

जाग जाता हूं तो सो जाता हूं आराम से,
वरना हर समय तुझसे मिलने को बेकरार हूं। 

इस अनजान डर का कुछ तो इलाज होगा,
वरना दुनियां के लिए तो मैं सरदार हूँ। 

थक गया हूँ इंतिहान देकर अब 'आनंद',
जिंदगी अब तुझसे हो गया बेजार हूँ। 


                     - मुकेश आनंद

©मुकेश आनंद

अपनी ख्वाहिशों का मैं खुद शिकार हूं, सच ऐ जिन्दगी हां मैं ही तेरा गुनहगार हूँ। मुझे पता है तू कभी मेरा हो नहीं सकता, फिर भी क्यूं मैं तेरा ही तलबगार हूं। जाग जाता हूं तो सो जाता हूं आराम से, वरना हर समय तुझसे मिलने को बेकरार हूं। इस अनजान डर का कुछ तो इलाज होगा, वरना दुनियां के लिए तो मैं सरदार हूँ। थक गया हूँ इंतिहान देकर अब 'आनंद', जिंदगी अब तुझसे हो गया बेजार हूँ। - मुकेश आनंद ©मुकेश आनंद

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